उन्होंने खुशी-खुशी खुद को पेश किया—प्रशांत महासागर के देशों में
करीब 35 साल की बहन रने ऑस्ट्रेलिया में एक साक्षी परिवार में पली-बढ़ी। उसका परिवार बहुत जोशीला था। बहन रने कहती है, “हम कई बार ऐसे इलाकों में जाकर रहे, जहाँ राज प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत थी। मम्मी-पापा ने ज़िंदगी को बहुत खुशनुमा, दिलचस्प और मज़ेदार बना दिया था! जब मेरे दो बच्चे हुए, तो मैं चाहती थी कि उन दोनों की ज़िंदगी भी वैसी ही हो।”
* वह लेख पढ़कर हममें इतना जोश भर गया कि हमने ऑस्ट्रेलिया और न्यू ज़ीलैंड के यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तरों को खत लिखा। हमने पूछा कि राज के प्रचारकों की कहाँ ज़्यादा ज़रूरत है। * हमें टोंगा में सेवा करने के लिए कहा गया, यह वही जगह थी जिसके बारे में हमने पढ़ा था!”
रने के पति शेन की उम्र करीब 37-38 की है। परमेश्वर की सेवा में शेन के भी कुछ ऐसे ही लक्ष्य थे। वह बताता है, “हमारा दूसरा बच्चा होने के बाद, हमने प्रहरीदुर्ग पत्रिका में एक ऐसे साक्षी परिवार के बारे में पढ़ा, जो अपने छोटे जहाज़ से दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत महासागर गए ताकि वे टोंगा के द्वीपों में प्रचार कर सकें।शेन, रने और उनके बच्चे, जेकब और स्काई करीब एक साल टोंगा में रहे। लेकिन आए दिन दंगे-फसाद होने की वजह से उन्हें ऑस्ट्रेलिया वापस आना पड़ा। पर उन्होंने प्रचार सेवा में ज़्यादा करने का जो लक्ष्य रखा था, उसे वे नहीं भूले। सन् 2011 में, वे नॉर्फोक द्वीप जाकर रहने लगे। यह प्रशांत महासागर में एक छोटा-सा द्वीप है, जो ऑस्ट्रेलिया के पूर्व में करीब 1,500 किलोमीटर की दूरी पर है। उनका वहाँ जाना कैसा रहा? चौदह साल का जेकब कहता है, “यहोवा ने न सिर्फ हमारी देखभाल की, बल्कि उसने प्रचार काम भी मज़ेदार बना दिया!”
परिवार के तौर पर सेवा करने के लिए आगे आना
शेन और उसके परिवार की तरह, कई दूसरे मसीही परिवार खुशी-खुशी ऐसी जगहों पर सेवा करने गए हैं जहाँ ज़्यादा ज़रूरत है। किस बात ने उन्हें ऐसा करने के लिए उभारा?
‘कई लोगों ने खुशखबरी में दिलचस्पी ली थी। और हम चाहते थे कि वे लगातार बाइबल के बारे में सीखें।’—बर्नेट
करीब 35 साल के बर्नेट और सीमोन अपने बेटों, ईस्टन और केलब के साथ बर्कटाउन नाम के कसबे में जाकर रहने लगे। यह कसबा ऑस्ट्रेलिया में क्वीन्सलैंड राज्य के दूर-दराज़ इलाके में है। उनका बड़ा बेटा ईस्टन 12 साल का है और छोटा बेटा केलब 9 साल का। वहाँ जाने की वजह बताते हुए बर्नेट कहता है, “साक्षी वहाँ हर तीन या चार साल में प्रचार किया करते थे। वहाँ कई लोगों ने खुशखबरी में दिलचस्पी भी ली थी। और हम चाहते थे कि वे लगातार बाइबल के बारे में सीखें।”
मार्क और कैरन 52-53 साल के हैं।उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर के पास कई मंडलियों में सेवा की है। फिर वे और उनके तीन बच्चे, जेसिका, जिम और जैक, नलनबॉइ नाम के कसबे में जाकर रहने लगे। यहाँ खदानों में काम करनेवालों का एक समुदाय बसा है। यह ऑस्ट्रेलिया के नॉर्थर्न टेरिटरी में आता है। मार्क कहता है, “मुझे लोगों से प्यार है, इसलिए मैं ऐसी जगह सेवा करना चाहता था जहाँ मंडली में और प्रचार के इलाके में ज़्यादा काम हो।” लेकिन कैरन दूसरी जगह जाकर रहने से हिचकिचा रही थी। वह कहती है, ‘लेकिन जब मार्क और दूसरों ने मेरा हौसला बढ़ाया, तो मैं वहाँ जाने के लिए तैयार हो गयी। अब मैं इस फैसले से बहुत खुश हूँ!’
बेंजमिन और कैरलिन, तिमोर द्वीप पर बसे एक छोटे-से देश तिमोर-लेस्ट में पहले सेवा करते थे। यह देश इंडोनेशिया के द्वीप-समूह में आता है। सन् 2011 में, वे अपनी दो बेटियों, जेड और ब्रीआ के साथ ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड शहर से वापस तिमोर-लेस्ट चले गए। उनकी बेटियों की उम्र उस समय 2-4 साल थी। बेंजमिन कहता है, “कैरलिन और मैंने पहले तिमोर-लेस्ट में खास पायनियर के तौर पर सेवा की थी। वहाँ खुशखबरी सुनाना बड़ा मज़ेदार था और वहाँ के भाई भी हमेशा मदद करने के लिए तैयार रहते थे। यह जगह छोड़ते वक्त हमारा दिल बहुत रोया। हमने ठान लिया था कि हम यहाँ वापस ज़रूर आएँगे। जब हमारे बच्चे हुए, तो हमने कुछ समय के लिए वहाँ जाने की योजना टाल दी, पर हमने अपना इरादा नहीं बदला।” कैरलिन कहती है, “हम चाहते थे कि हमारे बच्चे मिशनरियों, बेथेल के सदस्यों और खास पायनियरों की संगति में पले-बढ़ें। हम यह भी चाहते थे कि उन्हें परमेश्वर की सेवा में सबसे अच्छे अनुभव हों।”
एक जगह से दूसरी जगह जाने की तैयारी करना
यीशु ने अपने चेलों से कहा, “तुममें से ऐसा कौन है जो एक बुर्ज बनाना चाहता हो और पहले बैठकर इसमें लगनेवाले खर्च का हिसाब न लगाए?” (लूका 14:28) उसी तरह, जब एक परिवार दूसरे इलाके में जाकर रहने की सोचता है, तो उसे अच्छी तरह योजना बनानी चाहिए। उन्हें किन बातों पर गौर करना चाहिए?
उपासना से जुड़ी ज़रूरत: बेंजमिन कहता है, ‘हम लोगों की सेवा करना चाहते थे और उन पर बोझ नहीं बनना चाहते थे। इसलिए दूसरी जगह जाने से पहले हमने परमेश्वर के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करने के लिए कदम उठाए। साथ ही, हमने प्रचार में और मंडली के दूसरे कामों में ज़्यादा-से-ज़्यादा हिस्सा लिया।’
जेकब जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, बताता है: “नॉर्फोक द्वीप पर जाने से पहले, हमने प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाओं में ऐसे परिवारों के बारे में बहुत-सी जीवन-कहानियाँ पढ़ीं, जिन्होंने वहाँ जाकर सेवा की जहाँ ज़्यादा ज़रूरत है। उन परिवारों ने जिन चुनौतियों का सामना किया और जिस तरह यहोवा ने उनका खयाल रखा, उस बारे में हमने चर्चा की।” उसकी बहन स्काई, जो 11 साल की है, कहती है, “मैंने बहुत प्रार्थना की, कुछ अकेले तो कुछ मम्मी-पापा के साथ!”
जज़्बात: रने बताती है, “हम ऐसे इलाके में रहते थे जो मुझे बहुत पसंद था। और हमारे परिवारवाले और करीबी दोस्त भी आस-पास ही रहते थे। इसलिए वहाँ ज़िंदगी गुज़ारना आसान था। लेकिन मैंने इस बारे में ज़्यादा नहीं सोचा कि मैं क्या छोड़ रही हूँ, बल्कि यह सोचा कि वहाँ जाने से हमारे परिवार को क्या मिलेगा।”
रहन-सहन: बहुत-से परिवार नए माहौल में खुद को ढालने के लिए पहले से तैयारी करते हैं। इसलिए वे उस जगह के बारे में जाँच-पड़ताल करते हैं। मार्क कहता है, “हमसे जितना हो सकता था, हमने नलनबॉइ के बारे में जानकारी पढ़ी। वहाँ रहनेवाले भाई हमें वहाँ का अखबार भेजते थे, जिससे हम वहाँ के रहन-सहन और लोगों के बारे में थोड़ा-बहुत जान पाए।”
शेन जो नॉर्फोक द्वीप में गया था, बताता है, “सबसे ज़्यादा मैंने इस बात पर ध्यान दिया कि मैं अपनी ज़िंदगी में मसीही गुण कैसे दिखा सकता हूँ। मुझे पता था कि अगर मैं सच्चाई से जीऊँ, नम्र बनूँ, ईमानदार रहूँ और मेहनती बनूँ, तो मैं दुनिया में कहीं भी रह सकता हूँ।”
मुश्किलों का सामना करना
जहाँ ज़्यादा ज़रूरत है वहाँ जाकर सेवा करने में कामयाब हुए भाई-बहन कहते हैं कि अचानक आनेवाली मुश्किलों का सामना करने के लिए खुद को उस हालात के मुताबिक ढालने के लिए तैयार रहना और सही नज़रिया बनाए रखना बहुत ज़रूरी है। आइए कुछ मिसालों पर गौर करें:
रने बताती है, “मैंने अलग-अलग तरीकों से काम करना सीखा। जैसे, जब समुंदर में बहुत उथल-पुथल मचती थी, तो अनाज से भरे जहाज़ नॉर्फोक द्वीप तक नहीं आ पाते थे। उस वक्त राशन मिलना मुश्किल हो जाता था और बहुत महँगा भी होता था। इसलिए मैंने सीखा कि खाना पकाते वक्त जो घर में है, उसी से काम चलाओ।” उसका पति शेन कहता है, “हम हफ्ते भर के लिए पहले से जो खर्च तय करते थे, उसमें भी फेरबदल करते थे।”
उनका बेटा जेकब एक अलग तरह की मुश्किल के बारे में बताता है। वह कहता है, “हमारी नयी मंडली में सिर्फ सात लोग और थे और सब-के-सब बड़े। इसलिए मेरी उम्र का मेरा कोई दोस्त नहीं था! लेकिन जब मैंने प्रचार में अपने से बड़ी उम्र वालों के साथ काम किया, तो जल्द ही हम दोस्त बन गए।”
जिम जो अब 21 साल का है, उसने भी कुछ ऐसी ही मुश्किल का सामना किया। वह बताता है, “नलनबॉइ के पास जो सबसे नज़दीकी मंडली थी, वह 725 किलोमीटर से भी ज़्यादा दूर थी। इसलिए हम सम्मेलनों और अधिवेशनों से ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा
पाने की कोशिश करते थे। हम वहाँ जल्दी पहुँचते थे और भाई-बहनों की संगति का खूब मज़ा लेते थे। ये मौके हमारे लिए पूरे साल में बहुत खास होते थे!”“खुशी है कि हम यहाँ आए!”
बाइबल में लिखा है, “धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है।” (नीति. 10:22) परमेश्वर के वचन की इस सच्चाई का दुनिया-भर में बहुत-से ऐसे प्रचारकों ने अनुभव किया है, जिन्होंने वहाँ जाकर सेवा की जहाँ ज़्यादा ज़रूरत है।
मार्क कहता है, ‘यहाँ आने से हमारे बच्चों पर जो असर हुआ है, वह हमारे लिए सबसे बड़ी आशीष है। और बड़े बच्चों को पूरा यकीन है कि यहोवा उनकी देखभाल करेगा, जो राज के कामों को ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं। और यह यकीन खरीदा नहीं जा सकता।’
शेन कहता है, ‘मेरा अब मेरी पत्नी और बच्चों के साथ बहुत मज़बूत रिश्ता है। जब मैं उन्हें यह बताते हुए सुनता हूँ कि यहोवा ने उनके लिए क्या कुछ किया है, तो मुझे सच में बहुत खुशी होती है।’ उसका बेटा जेकब इस बात से सहमत है। वह कहता है, “मुझे यहाँ खूब मज़ा आया। मुझे बहुत खुशी है कि हम यहाँ आए!”
^ पैरा. 3 फुटनोट: 15 दिसंबर, 2004 की प्रहरीदुर्ग के पेज 8-11 पर दिया लेख “‘दोस्ताना द्वीपों’ में परमेश्वर के दोस्त” देखिए।
^ पैरा. 3 फुटनोट: सन् 2012 में, ऑस्ट्रेलिया और न्यू ज़ीलैंड के शाखा दफ्तरों को मिलाकर ऑस्ट्रलेशिया शाखा दफ्तर बना दिया गया।