क्या परमेश्वर का “मुफ्त वरदान” आपको मजबूर करता है?
“परमेश्वर के उस मुफ्त वरदान के लिए जिसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता, उसका धन्यवाद हो।”—2 कुरिं. 9:15.
गीत: 53, 18
1, 2. (क) परमेश्वर के “मुफ्त वरदान” में क्या शामिल है? (ख) इस लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?
यहोवा ने अपने अज़ीज़ बेटे यीशु को धरती पर भेजकर हमें सबसे बड़ा तोहफा दिया है! यह तोहफा देकर उसने अपना महान प्यार ज़ाहिर किया। (यूह. 3:16; 1 यूह. 4:9, 10) प्रेषित पौलुस ने इस तोहफे को ऐसा “मुफ्त वरदान” कहा, “जिसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।” (2 कुरिं. 9:15) पौलुस ने ऐसा क्यों कहा?
2 पौलुस जानता था कि यीशु का बलिदान इस बात की गारंटी है कि परमेश्वर के सभी शानदार वादे पूरे होंगे। (2 कुरिंथियों 1:20 पढ़िए।) तो क्या इसका मतलब परमेश्वर के “मुफ्त वरदान” में “जिसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता” सिर्फ यीशु का बलिदान शामिल है? जी नहीं। इसमें वह सारी भलाई भी शामिल है जो यहोवा हमारे लिए करता है, साथ ही वह अटल प्यार भी जो वह यीशु के ज़रिए जताता है। असल में इस कीमती और अनोखे तोहफे के बारे में इंसानों की भाषा में पूरी तरह समझाना नामुमकिन है। लेकिन अब सवाल हैं, इस खास तोहफे का हम पर कैसा असर होना चाहिए? और इस साल स्मारक मनाने की तैयारी करते वक्त यह तोहफा हमें क्या करने के लिए उभारना चाहिए? इस साल स्मारक बुधवार, 23 मार्च, 2016 को मनाया जाएगा।
परमेश्वर से मिला खास तोहफा
3, 4. (क) जब आपको कोई तोहफा देता है, तो आपको कैसा लगता है? (ख) किसी खास तोहफे से कैसे आपकी ज़िंदगी बदल सकती है?
3 जब हमें कोई तोहफा देता है, तो हमें बहुत अच्छा लगता है। कुछ तोहफे तो इतने मायने रखते हैं या इतने खास होते हैं कि उनसे हमारी ज़िंदगी बदल सकती है। मिसाल के लिए, मान लीजिए आपने कोई जुर्म किया है। उस जुर्म की सज़ा मौत है। लेकिन अचानक कोई अजनबी आकर कहता है कि आपकी जगह वह सज़ा भुगतने के लिए तैयार है, वह अपनी जान देने के लिए तैयार है! आपको कैसा लगेगा? इस भलाई या खास तोहफे का आप पर कैसा असर होगा?
4 इसमें कोई शक नहीं कि निःस्वार्थ प्यार से सराबोर यह तोहफा आपको यह सोचने पर मजबूर कर देगा कि आप अपनी ज़िंदगी में बदलाव करें। यह शायद आपको इस बात के लिए उभारे कि आप और भी दरियादिल हों, लोगों से प्यार करें और जिन्होंने आपको चोट पहुँचायी है उन्हें माफ कर दें। आप ज़िंदगी भर उस व्यक्ति के एहसानमंद रहेंगे, जिसने आपके लिए यह त्याग किया है।
5. परमेश्वर ने हमें फिरौती के रूप में जो तोहफा दिया है, वह किस मायने में दूसरे किसी भी तोहफे से ज़्यादा अनमोल है?
5 परमेश्वर ने हमें फिरौती के रूप में जो तोहफा दिया है, वह मिसाल में बताए तोहफे से कहीं ज़्यादा अनमोल है। (1 पत. 3:18) किस मायने में? ज़रा सोचिए, हम सभी को आदम से विरासत में पाप मिला है और पाप की सज़ा मौत है। (रोमि. 5:12) लेकिन यहोवा ने प्यार के वास्ते यीशु को धरती पर भेजा, ताकि “वह हर इंसान के लिए मौत का स्वाद चख सके।” (इब्रा. 2:9) यीशु ने जो बलिदान दिया उससे न सिर्फ हमारी आज की ज़िंदगी बचेगी, बल्कि इससे मौत हमेशा के लिए मिट जाएगी। (यशा. 25:7, 8; 1 कुरिं. 15:22, 26) यीशु पर जो विश्वास करते हैं, वे सभी शांति से और खुशी-खुशी हमेशा की ज़िंदगी जीएँगे, फिर चाहे स्वर्ग में मसीह के साथ राजा बनकर जीएँ या धरती पर परमेश्वर के राज की प्रजा बनकर। (रोमि. 6:23; प्रका. 5:9, 10) यहोवा के दिए तोहफे में और क्या-क्या बरकतें शामिल हैं?
6. (क) आप यहोवा के दिए तोहफे में शामिल कौन-सी आशीषें पाने के लिए बेताब हैं? (ख) यह तोहफा हमें कौन-सी तीन बातों के लिए उभारेगा?
6 यहोवा के दिए तोहफे में यह भी शामिल है कि धरती फिरदौस बना दी जाएगी, हर तरह की बीमारी दूर कर दी जाएगी और जो मर गए हैं, उन्हें दोबारा ज़िंदा किया जाएगा। (यशा. 33:24; 35:5, 6; यूह. 5:28, 29) बेशक हम यहोवा और उसके अज़ीज़ बेटे यीशु से प्यार करते हैं, क्योंकि उन्होंने हमें ऐसा “मुफ्त वरदान” दिया है “जिसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।” लेकिन सवाल है, यह वरदान या तोहफा हमें क्या करने के लिए उभारेगा? यह हमें तीन बातों के लिए उभारेगा: (1) हम मसीह यीशु की मिसाल पर चलें, (2) अपने भाइयों से प्यार करें और (3) दूसरों को दिल से माफ करें।
“मसीह का प्यार हमें मजबूर करता है”
7, 8. (क) मसीह को हमसे जो प्यार है, उससे हमें क्या एहसास होना चाहिए? (ख) यह प्यार हमें क्या करने के लिए उभारना चाहिए?
7 सबसे पहली बात, हमारे मन में यह एहसास होना चाहिए कि हम ऐसी ज़िंदगी जीएँ, जिससे यीशु का आदर हो। प्रेषित पौलुस ने कहा, “मसीह का प्यार हमें मजबूर करता है।” (2 कुरिंथियों 5:14, 15 पढ़िए।) पौलुस जानता था कि अगर हम यीशु का महान प्यार कबूल करते हैं, तो यह हमें मजबूर करेगा या उभारेगा कि हम यीशु से प्यार करें और उसका आदर करें। जी हाँ, जब हम पूरी तरह यह समझ जाएँगे कि यहोवा ने हमारे लिए कितना कुछ किया है, तो उसका प्यार हमें ऐसी ज़िंदगी जीने के लिए उभारेगा जो यीशु को मंज़ूर है। इसके लिए हमें क्या करना होगा?
8 यहोवा के लिए प्यार हमें उभारेगा कि हम यीशु 1 पत. 2:21; 1 यूह. 2:6) जब हम परमेश्वर और मसीह की आज्ञा मानते हैं, तो हम उनके लिए अपना प्यार ज़ाहिर कर रहे होते हैं। यीशु ने कहा था, “जिसके पास मेरी आज्ञाएँ हैं और जो उन्हें मानता है, वही है जो मुझसे प्यार करता है। जो मुझसे प्यार करता है उससे मेरा पिता प्यार करेगा और मैं उससे प्यार करूँगा और अपने आपको उस पर खुलकर ज़ाहिर करूँगा।”—यूह. 14:21; 1 यूह. 5:3.
की मिसाल पर चलें, यानी उसके नक्शेकदम पर नज़दीकी से चलें। (9. हम पर क्या दबाव आते हैं?
9 इस साल जब हम मसीह की मौत का स्मारक मनाएँगे, तो उस मौसम (मार्च, अप्रैल और मई) में इस बात पर गौर करना अच्छा होगा कि हम किस तरह ज़िंदगी जीते हैं। इसलिए खुद से पूछिए, ‘किन मामलों में मैं यीशु के नक्शेकदम पर चल रहा हूँ? और किन मामलों में मुझे और सुधार करने की ज़रूरत है?’ खुद से इस तरह के सवाल करना ज़रूरी है क्योंकि यह दुनिया चाहती है कि हम वैसे ही ज़िंदगी जीएँ जैसे यह दुनिया जीती है। (रोमि. 12:2) अगर हम सावधान न रहें, तो हम पर इस दुनिया का रंग चढ़ने लग सकता है यानी हम दुनिया के शिक्षकों, जानी-मानी हस्तियों और मशहूर खिलाड़ियों जैसी चाल चलने लग सकते हैं। (कुलु. 2:8; 1 यूह. 2:15-17) हमारे साथ ऐसा न हो, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?
10. (क) इस साल स्मारक के मौसम में हम खुद से क्या पूछ सकते हैं? (ख) इन सवालों के जवाब हमें क्या करने के लिए उभार सकते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
10 स्मारक के मौसम में कुछ इस तरह की बातों पर गौर करना भी अच्छा होगा जैसे, हम किस तरह के कपड़े पहनते हैं, कैसी फिल्में देखते हैं और कैसा संगीत सुनते हैं। हम यह भी जाँच कर सकते हैं कि हमारे कंप्यूटर, मोबाइल फोन या टैबलेट में क्या है। खुद से पूछिए, ‘अगर यीशु यहाँ होता और देखता कि मैंने कैसे कपड़े पहने हैं, तो क्या मेरी नज़रें शर्म से झुक जातीं?’ (1 तीमुथियुस 2:9, 10 पढ़िए।) ‘क्या मेरे पहनावे से झलकता है कि मैं मसीह का चेला हूँ? मैं जो फिल्में देखता हूँ, क्या यीशु उन्हें देखना पसंद करता? जो गाने मैं सुनता हूँ, क्या यीशु उन्हें सुनना पसंद करता? अगर यीशु मुझसे मेरा फोन या टैबलेट माँगता, तो उसमें वह जो देखता, क्या उससे मैं शर्म से पानी-पानी हो जाता? जो वीडियो गेम खेलने में मुझे मज़ा आता है, क्या यीशु को उसकी वजह बताना मेरे लिए मुश्किल होता?’ यहोवा के लिए हमारा प्यार हमें उभारना चाहिए कि हम ऐसी हर चीज़ फेंक दें, जो एक मसीही के लिए सही नहीं है, फिर चाहे वह कितनी ही महँगी क्यों न हो। (प्रेषि. 19:19, 20) हमने जब यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया था, तो हमने वादा किया था कि हम अपनी ज़िंदगी इस तरह जीएँगे जिससे यीशु का आदर हो। इसलिए हमें ऐसी कोई चीज़ नहीं रखनी चाहिए, जिससे हमारे लिए यीशु के नक्शेकदम पर चलना मुश्किल हो जाए।—मत्ती 5:29, 30; फिलि. 4:8.
11. (क) यहोवा और यीशु के लिए हमारा प्यार हमें किस तरह प्रचार करने के लिए उभारता है? (ख) यही प्यार हमें मंडली में दूसरों की मदद करने के लिए कैसे उभारता है?
11 यीशु के लिए हमारा प्यार हमें उभारता है कि हम जोश के साथ प्रचार करें और लोगों को सिखाएँ। (मत्ती 28:19, 20; लूका 4:43) स्मारक के मौसम में क्या आप रोज़ाना के काम में कुछ इस तरह फेरबदल कर सकते हैं जिससे आप सहयोगी पायनियर सेवा कर सकें और प्रचार में 30 या 50 घंटे बिता सकें? एक विधुर भाई जिनकी उम्र 84 साल है, उन्हें लगता था कि वे अपनी उम्र और खराब सेहत की वजह से पायनियर सेवा नहीं कर सकते। लेकिन उनके इलाके के पायनियर उनकी मदद करना चाहते थे। उन्होंने उस भाई के आने-जाने का इंतज़ाम किया और प्रचार के लिए उनकी सहुलियत के हिसाब से इलाका चुना, ताकि वे 30 घंटे पूरे कर सकें। क्या आप अपनी मंडली में किसी भाई या बहन की मदद कर सकते हैं, ताकि वह मार्च या अप्रैल में सहयोगी पायनियर सेवा कर सके? हाँ यह सच है कि हर कोई पायनियर सेवा नहीं कर सकता, लेकिन हम अपना वक्त और ताकत इस तरह तो लगा ही सकते हैं, जिससे हम यहोवा की सेवा में और ज़्यादा कर सकें। जब हम ऐसा करते हैं, तो पौलुस की तरह हम यह ज़ाहिर कर रहे होंगे कि हमें यीशु के प्यार ने मजबूर किया है। परमेश्वर का प्यार हमें और क्या करने के लिए उभारेगा?
एक-दूसरे से प्यार करना हमारा फर्ज़ है
12. परमेश्वर का प्यार हमें क्या करने के लिए उभारता है?
12 दूसरी बात, परमेश्वर का प्यार हमें उभारे कि हम अपने भाइयों से प्यार करें। यह बात प्रेषित यूहन्ना समझता था। उसने लिखा, “मेरे प्यारो, जब परमेश्वर ने हमसे इस कदर प्यार किया है, तो फिर हमारा यह फर्ज़ बनता है कि हम भी एक-दूसरे से प्यार करें।” (1 यूह. 4:7-11) इसलिए अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमसे प्यार करे, तो हमारा फर्ज़ बनता है कि हम अपने भाइयों से प्यार करें। (1 यूह. 3:16) हम उनके लिए अपना प्यार कैसे जता सकते हैं?
13. यीशु ने दूसरों से प्यार करने में कैसा उदाहरण रखा?
13 यीशु के उदाहरण से हमें पता चलता है कि हम कैसे दूसरों से प्यार कर सकते हैं। जब वह धरती पर था, तो उसने लोगों की मदद की, खासकर दीन-दुखियारे लोगों की। उसने शारीरिक तौर पर लाचार लोगों की मदद की। जैसे, जो चल-फिर नहीं सकते थे, देख-सुन नहीं सकते थे या जो बोल नहीं सकते थे। (मत्ती 11:4, 5) यीशु उस ज़माने के धर्म-गुरुओं जैसा नहीं था। उसे उन लोगों को सिखाना अच्छा लगता था, जो परमेश्वर के बारे में सीखना चाहते थे। (यूह. 7:49) वह दीन-दुखियारे लोगों से प्यार करता था और उनकी मदद करने के लिए उसने बहुत मेहनत की।—मत्ती 20:28.
14. आप भाई-बहनों के लिए प्यार कैसे जता सकते हैं?
14 स्मारक का मौसम यह सोचने के लिए भी अच्छा समय है कि आप अपनी मंडली के भाई-बहनों की कैसे मदद कर सकते हैं, खासकर बुज़ुर्गों की। क्या आप इन प्यारे भाई-बहनों से मिलने जा सकते हैं? उनके लिए खाना बनाकर ले जा सकते हैं? उनके घर का काम कर सकते हैं? या फिर उन्हें अपने साथ सभा में या प्रचार में ले जा सकते हैं? (लूका 14:12-14 पढ़िए।) हमारी दुआ है कि परमेश्वर का प्यार आपको उभारे कि आप भाई-बहनों के लिए प्यार जताएँ।
अपने भाई-बहनों को माफ कीजिए
15. हमें क्या बात कबूल करनी चाहिए?
15 तीसरी बात, यहोवा का प्यार हमें उभारता है कि हम अपने भाई-बहनों को माफ करें। हम सभी को आदम से विरासत में पाप और मौत मिली है। इसलिए कोई भी यह नहीं कह सकता, “मुझे फिरौती की ज़रूरत नहीं है।” यहाँ तक कि परमेश्वर का सबसे वफादार सेवक भी नहीं। उसे भी परमेश्वर की महा-कृपा की ज़रूरत है। ऐसा यहोवा ने मसीह के
बलिदान के ज़रिए किया है। उसने हम सभी का बहुत बड़ा कर्ज़ माफ किया है! यह बात कबूल करना क्यों ज़रूरी है? इसका जवाब हमें यीशु की एक मिसाल में मिलता है।16, 17. (क) यीशु ने जो राजा और दासों की मिसाल दी, उससे हमें क्या सीखना चाहिए? (ख) यीशु की दी मिसाल पर मनन करने के बाद आपने क्या करने की ठान ली है?
16 यीशु ने एक राजा की मिसाल दी थी, जिसने अपने दास का छः करोड़ दीनार का बहुत बड़ा कर्ज़ माफ कर दिया था। लेकिन बाद में उसी दास ने अपने साथ काम करनेवाले दास का सिर्फ 100 दीनार का कर्ज़ माफ नहीं किया। राजा की दया पाकर उस दास को अपने साथी का कर्ज़ माफ कर देना चाहिए था। मगर उसने ऐसा नहीं किया। जब राजा ने यह बात सुनी, तो वह भड़क उठा। उसने कहा, “दुष्ट दास, जब तू मेरे सामने गिड़गिड़ाया था, तब मैंने तेरा सारा कर्ज़ माफ कर दिया था। तो क्या तेरा यह फर्ज़ नहीं था कि तू भी बदले में अपने संगी दास पर वैसे ही दया करता, जैसे मैंने तुझ पर दया की थी?” (मत्ती 18:23-35) उस राजा की तरह यहोवा ने हमारा बहुत बड़ा कर्ज़ माफ किया है। तो फिर यहोवा का प्यार और उसकी दया हमें क्या करने के लिए उभारनी चाहिए?
17 जब हम स्मारक की तैयारी करेंगे, तो हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या किसी भाई ने मुझे चोट पहुँचायी है? क्या उसे माफ करना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है?’ अगर ऐसा है, तो यह एक सही वक्त है कि हम यहोवा की मिसाल पर चलें, जो “क्षमा करनेवाला” परमेश्वर है। (नहे. 9:17; भज. 86:5) जब हम यह समझेंगे कि यहोवा ने हम पर कितनी दया की है, तो हम भी दूसरों पर दया करेंगे और उन्हें दिल से माफ करेंगे। अगर हम अपने भाइयों से प्यार नहीं करते और उन्हें माफ नहीं करते, तो हम यहोवा से प्यार और माफी पाने की उम्मीद नहीं कर सकते। (मत्ती 6:14, 15) जब हम दूसरों को माफ करेंगे, तो इससे यह सच्चाई तो नहीं बदल जाएगी कि उन्होंने हमें चोट पहुँचायी है, पर हमारा भविष्य ज़रूर बदल जाएगा यानी खुशहाल हो जाएगा।
18. परमेश्वर के प्यार ने कैसे एक बहन को दूसरी बहन की कमज़ोरियाँ सहने के लिए उभारा?
18 हममें से कई लोगों के लिए भाई-बहनों की कमज़ोरियाँ सहना बहुत मुश्किल हो सकता है। (कुलुस्सियों 3:13, 14; इफिसियों 4:32 पढ़िए।) लिली नाम की बहन के उदाहरण पर गौर कीजिए। उसने करुणा नाम की एक विधवा बहन की मदद की। [1] जैसे, अगर करुणा को कहीं जाना होता था, तो लिली उसे गाड़ी में ले जाती थी, ज़रूरी चीज़ें खरीदने में उसकी मदद करती थी और उसके बहुत सारे काम करती थी। लिली के इतना सब करने के बावजूद, करुणा हमेशा कुछ-न-कुछ नुक्स निकालती रहती थी। कभी-कभी उसकी मदद करना आसान नहीं होता था। लेकिन लिली ने करुणा के अच्छे गुणों पर ध्यान दिया। वह कई सालों तक उसकी मदद करती रही। फिर करुणा बहुत बीमार हो गयी और उसकी मौत हो गयी। हालाँकि करुणा की देखभाल करना लिली के लिए मुश्किल था, पर वह कहती है, “मैं करुणा को दोबारा ज़िंदा देखने के लिए बेताब हूँ। जब वह सिद्ध हो जाएगी, तब मैं उसे समझना चाहती हूँ।” साफ ज़ाहिर है कि परमेश्वर का प्यार हमें भाई-बहनों की कमज़ोरियाँ सहने और वह वक्त देखने के लिए उभार सकता है, जब इंसानों की सारी कमज़ोरियाँ हमेशा के लिए दूर हो जाएँगी।
19. परमेश्वर का ‘मुफ्त वरदान जिसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता’ आपको क्या करने के लिए उभारेगा?
19 यहोवा ने वाकई हमें ऐसा “मुफ्त वरदान” दिया है, “जिसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।” आइए हम हमेशा इसकी कदर करें! स्मारक का मौसम उन सब कामों पर मनन करने का बढ़िया समय है, जो यहोवा और यीशु ने हमारे लिए किए हैं। ऐसा हो कि उनका प्यार हमें उभारे कि हम यीशु के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलें, अपने भाई-बहनों के लिए प्यार जताएँ और उन्हें दिल से माफ करें।
^ [1] (पैराग्राफ 18) इस लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।