क्या आप लोगों का सिर्फ बाहरी रूप देखते हैं?
डौन कनाडा में रहता है और यहोवा का एक साक्षी है। वह उन लोगों को खुशखबरी सुनाने की खास कोशिश करता है, जो बेघर हैं और सड़कों पर रहते हैं। वह बताता है, “एक दिन इमारतों के पीछे की गलियों में मेरी मुलाकात पीटर से हुई। उसके जैसा गंदा और मैला आदमी मैंने आज तक नहीं देखा। कई लोगों ने इंसानियत की खातिर उसकी मदद करने की कोशिश की मगर वह कोई मदद नहीं लेता था। वह इतनी रुखाई से पेश आता था कि लोग उससे दूर भागते थे।” लेकिन डौन उसके साथ सब्र से पेश आया और 14 से भी ज़्यादा सालों तक उसकी मदद करने की कोशिश करता रहा।
एक दिन पीटर ने डौन से पूछा, “सब लोगों ने मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया है, तो तुम क्यों मेरी मदद करना चाहते हो? आखिर तुम्हें मेरी इतनी परवाह क्यों है?” डौन ने उसे बाइबल से तीन आयतें दिखायीं ताकि उसके दिल तक पहुँच सके। पहले उसने पीटर से पूछा कि क्या उसे परमेश्वर का नाम पता है। फिर उसने पीटर को भजन 83:18 पढ़ने के लिए कहा। इसके बाद डौन ने उसे रोमियों 10:13, 14 पढ़वाया और उसे समझाया कि क्यों उसे पीटर की इतनी परवाह है। वह आयत बताती है, “जो कोई यहोवा का नाम पुकारता है वह उद्धार पाएगा।” आखिर में डौन ने मत्ती 9:36 पढ़ा और पीटर से भी कहा कि वह यह आयत पढ़े। वहाँ लिखा है, “जब [यीशु ने] भीड़ को देखा तो वह तड़प उठा, क्योंकि वे ऐसी भेड़ों की तरह थे जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो।” यह पढ़कर पीटर की आँखों में आँसू आ गए और उसने पूछा, “क्या मैं भी ऐसी एक भेड़ हूँ?”
पीटर में धीरे-धीरे बदलाव आने लगे। वह खुद को साफ-सुथरा रखने लगा। वह नहाने लगा, साफ-सुथरी दाढ़ी रखने लगा और अच्छे कपड़े पहनने लगा, जो डौन ने उसे दिए थे।
पीटर अपनी ज़िंदगी की बातें एक डायरी में लिखता था। इसके शुरू के पन्नों से पता चलता है कि वह बहुत निराश और दुखी था। लेकिन आगे के पन्नों से मालूम होता है कि उसका नज़रिया बदलने लगा था। डायरी में एक जगह उसने लिखा, “आज पहली बार मैंने जाना कि परमेश्वर का एक नाम है। उसका नाम जानकर मुझे बहुत अच्छा लगा। अब से मैं यहोवा से प्रार्थना कर सकता हूँ। डौन कहता है कि यहोवा मेरा करीबी
दोस्त बन सकता है। वह मेरी हर बात सुनने के लिए हमेशा तैयार रहेगा।”डायरी में लिखी आखिरी बात उसके भाई-बहनों के लिए थी। उसने उन्हें लिखा,
“आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है, शायद बुढ़ापे का असर है। लेकिन अगर यह मेरी ज़िंदगी का आखिरी दिन भी हो, तो भी मुझे कोई डर नहीं। मैं जानता हूँ कि मैं फिरदौस में वापस आऊँगा और अपने दोस्त [डौन] से मिलूँगा। जब तक तुम्हें मेरी यह डायरी मिलेगी तब तक शायद मैं ज़िंदा नहीं रहूँगा। मेरे अंतिम संस्कार के वक्त अगर तुम्हें कोई अजनबी नज़र आए तो समझ जाना कि वही मेरा दोस्त है। उससे बात करना और हाँ, यह नीली किताब ज़रूर पढ़ना। * इसमें लिखा है कि फिरदौस में मुझे ज़िंदा किया जाएगा, तब मैं अपने दोस्त से दोबारा मिल पाऊँगा। मुझे इस बात पर पूरा यकीन है। तुम्हारा भाई पीटर, जो तुमसे बहुत प्यार करता है।”
पीटर के अंतिम संस्कार के बाद, उसकी बहन ऊमी कहती है, “करीब दो साल पहले पीटर मुझसे मिलने आया था। इतने सालों में पहली बार वह खुश लग रहा था, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट भी थी।” ऊमी ने डौन से कहा, “मैं यह किताब ज़रूर पढ़ूँगी क्योंकि जिस किताब ने मेरे भाई पर गहरा असर किया है, उसमें ज़रूर कोई खास बात होगी।” इसके अलावा, वह यहोवा के साक्षियों के साथ एक और किताब से चर्चा करने को राज़ी हुई। वह किताब है, बाइबल असल में क्या सिखाती है? जो हाल के सालों में प्रकाशित की गयी है।
इस अनुभव से हम सीखते हैं कि हमें सिर्फ लोगों का बाहरी रूप देखकर कोई राय कायम नहीं करनी चाहिए। लेकिन हमें हर किस्म के लोगों से सच्चा प्यार करना चाहिए और उनके साथ सब्र से पेश आना चाहिए। (1 तीमु. 2:3, 4) इस तरह हम उन लोगों को अपने अंदर बदलाव करने के लिए उभार सकते हैं जिनका बाहरी रूप पीटर की तरह हो मगर वे दिल से अच्छे हों। हम यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर ऐसे नेकदिल लोगों में सच्चाई का बीज बढ़ा सकता है क्योंकि वह लोगों का “दिल देखता है।”—1 शमू. 16:7; यूह. 6:44.
^ पैरा. 7 वह किताब थी, सत्य जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है, जो सालों पहले पीटर को मिली थी। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है, लेकिन अब इसकी छपाई बंद हो गयी है।