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कुरिंथियों के नाम दूसरी चिट्ठी

अध्याय

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सारांश

  • 1

    • नमस्कार (1, 2)

    • सब परीक्षाओं में परमेश्‍वर से दिलासा (3-11)

    • पौलुस के सफर की योजना बदली (12-24)

  • 2

    • पौलुस खुशी देना चाहता है (1-4)

    • पापी माफ किया गया, बहाल किया गया (5-11)

    • पौलुस त्रोआस और मकिदुनिया में (12, 13)

    • हमारी सेवा जीत का जुलूस है (14-17)

      • परमेश्‍वर के वचन के सौदागर नहीं (17)

  • 3

    • सिफारिशी चिट्ठियाँ (1-3)

    • नए करार के सेवक (4-6)

    • नए करार की महिमा बढ़कर है (7-18)

  • 4

    • खुशखबरी की रौशनी (1-6)

      • अविश्‍वासियों का मन अंधा कर दिया (4)

    • मिट्टी के बरतनों में खज़ाना (7-18)

  • 5

    • स्वर्ग का निवास पहनना (1-10)

    • सुलह करवाने की सेवा (11-21)

      • एक नयी सृष्टि (17)

      • मसीह के लिए राजदूत (20)

  • 6

    • परमेश्‍वर की कृपा का गलत इस्तेमाल मत करो (1, 2)

    • पौलुस की सेवा का ब्यौरा (3-13)

    • बेमेल जुए में न जुतो (14-18)

  • 7

    • हम खुद को शुद्ध करें (1)

    • कुरिंथियों की वजह से पौलुस खुश (2-4)

    • तीतुस अच्छी खबर लाता है (5-7)

    • परमेश्‍वर को खुश करनेवाली उदासी; पश्‍चाताप (8-16)

  • 8

    • यहूदिया के मसीहियों के लिए दान जमा करना (1-15)

    • तीतुस को कुरिंथ भेजा गया (16-24)

  • 9

    • देने का बढ़ावा (1-15)

      • परमेश्‍वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है (7)

  • 10

    • पौलुस अपनी सेवा की पैरवी करता है (1-18)

      • हमारे हथियार दुनियावी नहीं (4, 5)

  • 11

    • पौलुस और महा-प्रेषित (1-15)

    • पौलुस पर आयीं मुसीबतें (16-33)

  • 12

    • पौलुस के दर्शन (1-7क)

    • पौलुस के “शरीर में एक काँटा” (7ख-10)

    • महा-प्रेषितों से कम नहीं (11-13)

    • कुरिंथियों के लिए पौलुस की चिंता (14-21)

  • 13

    • आखिरी चेतावनियाँ और सलाह (1-14)

      • “खुद को जाँचते रहो कि तुम विश्‍वास में हो या नहीं” (5)

      • सुधार करते रहो; एक जैसी सोच रखो (11)