उनके विश्वास की मिसाल पर चलिए | अय्यूब
“मैं मरते दम तक निर्दोष बना रहूँगा!”
उसके पूरे शरीर पर फोड़े निकल आए थे। दर्द से इतना बुरा हाल था कि वह सिर झुकाए ज़मीन पर लाचार बैठा हुआ था। वह इतना कमज़ोर हो गया था कि उसके कंधे झुक गए और हाथों में इतनी ताकत भी न रही कि वह अपने आस-पास भिनभिनाती मक्खियों को भगा सके। उसकी हालत ऐसी हो गयी थी कि वह कुछ नहीं कर सकता था। बस राख पर बैठा रहा और मिट्टी के टूटे बरतन का एक टुकड़ा लेकर अपना शरीर खुजाते हुए मातम मनाने लगा। उसने अपना सबकुछ खो दिया था। न दौलत रही, न ही लोगों की नज़र में कोई इज़्ज़त। दोस्त, पड़ोसी, रिश्तेदार, सबने साथ छोड़ दिया। जिसे देखो वह उसका मज़ाक उड़ा रहा था, बच्चे तक उसे दुतकार रहे थे। उसे लगा शायद उसके परमेश्वर यहोवा ने भी उसे छोड़ दिया है। लेकिन यह उसकी गलतफहमी थी।—अय्यूब 2:8; 19:18, 22.
जी हाँ, हम अय्यूब की बात कर रहे हैं। परमेश्वर ने उसके बारे में कहा था, “उसके जैसा धरती पर कोई नहीं।” (अय्यूब 1:8) अय्यूब की मौत के सदियों बाद भी यहोवा ने उसे याद रखा और कहा कि वह उन नेक लोगों में से एक है जो यहोवा की बात मानने में बढ़िया मिसाल थे।—यहेजकेल 14:14, 20.
क्या आप भी ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी मुसीबतें झेल रहे हैं? अगर हाँ, तो अय्यूब की सच्ची कहानी से आपको बहुत दिलासा मिलेगा। इतना ही नहीं, आप जानेंगे कि आप कैसे यहोवा के वफादार रह सकते हैं और निर्दोष चालचलन बनाए रख सकते हैं। यहोवा के हर सेवक में ये गुण होने चाहिए। यहोवा के वफादार रहने का मतलब है हमेशा उसकी बात मानना, फिर चाहे हम पर जो भी मुसीबत आए। आइए अय्यूब से सीखें कि हम यह सब कैसे कर सकते हैं।
अय्यूब क्या नहीं जानता था?
ऐसा मालूम होता है कि अय्यूब की कहानी मूसा ने लिखी थी। उसने यह कहानी अय्यूब की मौत के कुछ समय बाद लिखी थी। परमेश्वर की प्रेरणा से मूसा ने न सिर्फ यह लिखा कि अय्यूब के साथ क्या-क्या हुआ बल्कि यह भी लिखा कि स्वर्ग में क्या हुआ था जिसकी वजह से अय्यूब को इतना कुछ सहना पड़ा।
अय्यूब नाम की किताब में सबसे पहले हम पढ़ते हैं कि अय्यूब एक खुशहाल ज़िंदगी जी रहा था। वह ऊज़ देश का रहनेवाला था जो शायद उत्तरी अरब में था। अय्यूब बहुत अमीर था और समाज में उसकी बहुत इज़्ज़त थी। वह एक भला इंसान था। गरीबों की मदद करता था और दीन-दुखियों को उनका हक दिलाता था। उसका पारिवारिक जीवन भी खुशहाल था। उसके दस बच्चे थे। अय्यूब की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह परमेश्वर का डर माननेवाला इंसान था। उसने हमेशा यहोवा की बात मानने की कोशिश की, जैसे अब्राहम, इसहाक, याकूब और यूसुफ ने भी किया था। वे सभी अय्यूब के दूर के रिश्तेदार थे। उनकी तरह अय्यूब ने भी अपने परिवार के लिए याजक का काम किया। वह अपने बच्चों की तरफ से नियमित तौर पर बलिदान चढ़ाता था।—अय्यूब 1:1-5; 31:16-22.
अब लेखक अय्यूब की ज़िंदगी के बारे में बताते-बताते अचानक स्वर्ग में हुई एक घटना के बारे में बताता है, जिससे अय्यूब अनजान था। दरअसल हुआ यह कि एक दिन स्वर्ग में सभी अच्छे स्वर्गदूत यहोवा के सामने हाज़िर हुए। तब शैतान भी आया जो बागी बन गया था। यहोवा जानता था कि शैतान अय्यूब से बहुत नफरत करता है। इसलिए यहोवा ने शैतान से कहा कि अय्यूब कितना वफादार है। मगर जवाब में शैतान ने बेधड़क होकर कहा, “क्या अय्यूब यूँ ही तेरा डर मानता है? क्या तूने उसकी, उसके घर की और उसकी सब चीज़ों की हिफाज़त के लिए चारों तरफ बाड़ा नहीं बाँधा?” शैतान ऐसे लोगों से नफरत करता है जो यहोवा के वफादार रहते हैं। वह इसलिए कि जब कोई पूरे दिल से यहोवा की बात मानता है, तो वह साबित करता है कि शैतान के दिल में नफरत कूट-कूटकर भरी है। शैतान ने दावे के साथ कहा कि अय्यूब परमेश्वर की बात इसलिए मानता है क्योंकि परमेश्वर ने उसे सबकुछ दिया है। उसने कहा कि अगर अय्यूब का सबकुछ लुट जाए, तो वह मुँह पर ही यहोवा की निंदा करेगा!—अय्यूब 1:6-11.
अब अय्यूब के सामने एक बढ़िया मौका था। वह शैतान को झूठा साबित कर सकता था। यह बात अलग है कि उसे मालूम नहीं था कि यहोवा ने उसे यह मौका दिया है। यहोवा ने शैतान को इजाज़त दी कि वह अय्यूब से सबकुछ छीन ले। सिर्फ अय्यूब पर उसे हाथ नहीं लगाना था। शैतान को जैसे ही मौका मिला, वह अय्यूब पर टूट पड़ा। वह एक ही दिन में अय्यूब पर बड़ी-बड़ी विपत्तियाँ ले आया। एक-एक करके अय्यूब ने सारे जानवर खो दिए। पहले बैल और गधे, फिर भेड़ें और फिर ऊँट। सबकुछ अचानक हो गया। उसके जानवरों की देखभाल करनेवाले सेवक मार डाले गए। अय्यूब को खबर मिली कि उसके कुछ सेवकों और जानवरों पर “आसमान से परमेश्वर की आग” गिरी और वे मारे गए। शायद उन पर बिजली गिरी थी। जब इतने सारे सेवक एक-साथ मारे गए और सारी दौलत एक-साथ लुट गयी, तो अय्यूब बौखला गया। मगर वह इस सदमे से उभरा भी नहीं था कि इससे भी बड़ा हादसा हो गया। जब उसके सभी बच्चे अपने बड़े भाई के घर आए हुए थे, तो अचानक एक भयानक आँधी चली और वह घर तहस-नहस हो गया। अय्यूब के सारे बच्चे एक-साथ मारे गए।—अय्यूब 1:12-19.
हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि अय्यूब के दिल पर क्या बीती होगी। उसने अपने कपड़े फाड़े, सिर मुँड़वाया और ज़मीन पर गिर पड़ा। अय्यूब ने सोचा कि परमेश्वर ने ही उससे सबकुछ छीन लिया है। आखिर सबकुछ उसी का दिया हुआ था। शैतान ने भी बड़ी चालाकी से उसे एहसास दिलाया कि परमेश्वर ही उस पर सारी विपत्तियाँ लाया था। मगर इतना कुछ खोने पर भी अय्यूब ने परमेश्वर की निंदा नहीं की, जबकि शैतान ने कहा था कि वह ऐसा करेगा। उलटा अय्यूब ने कहा, “यहोवा के नाम की बड़ाई होती रहे।”—अय्यूब 1:20-22.
‘वह तेरे मुँह पर तेरी निंदा करेगा’
अय्यूब की वफादारी देखकर शैतान से रहा नहीं गया। एक बार फिर जब सारे स्वर्गदूत यहोवा के सामने इकट्ठा हुए, तो वह भी आया। तब यहोवा ने दोबारा अय्यूब की तारीफ की कि वह शैतान के हमलों के बावजूद कितना वफादार है। तब शैतान ने गुस्से में आकर कहा, “खाल के बदले खाल। इंसान अपनी जान बचाने के लिए अपना सबकुछ दे सकता है। अब ज़रा अपना हाथ बढ़ा और अय्यूब की हड्डी और शरीर को छू। फिर देख, वह कैसे तेरे मुँह पर तेरी निंदा करता है!” शैतान ने सोचा कि अगर अय्यूब को कोई बड़ी बीमारी लग जाए, तो वह ज़रूर परमेश्वर की निंदा करेगा। मगर यहोवा को अय्यूब पर पूरा भरोसा था कि वह किसी भी हाल में यहोवा को नहीं छोड़ेगा। यही वजह है कि उसने शैतान को इजाज़त दी कि वह उसे बीमार कर दे, पर उसकी जान न ले।—अय्यूब 2:1-6.
जैसे ही शैतान को इजाज़त मिली, उसने अय्यूब को एक दर्दनाक बीमारी से पीड़ित कर दिया। अय्यूब का जो हाल हुआ, वह लेख की शुरूआत में बताया गया है। ज़रा सोचिए उसकी पत्नी को यह सब देखकर कैसा लगा होगा। एक तो वह पहले ही अपने दस बच्चों को खोने का गम सह रही थी। ऊपर से अब उसके पति की यह बुरी हालत हो गयी थी। उससे बरदाश्त नहीं हुआ और वह अय्यूब से कहने लगी, “क्या तू अब भी निर्दोष बना रहेगा? परमेश्वर की निंदा कर और मर जा!” अय्यूब जानता था कि वह क्यों ऐसा कह रही है। उसने इतना कुछ सहा था कि वह अपना सुध-बुध खो बैठी। मगर ऐसे में भी अय्यूब ने परमेश्वर की निंदा नहीं की। उसके मुँह से कोई गलत बात नहीं निकली।—अय्यूब 2:7-10.
अय्यूब की दर्दनाक कहानी हम में से हरेक के लिए बहुत मायने रखती है। गौर कीजिए कि शैतान ने सिर्फ अय्यूब पर नहीं बल्कि सभी इंसानों पर दोष लगाया कि वे अपने स्वार्थ के लिए यहोवा की बात मानते हैं। उसने कहा, “इंसान अपनी जान बचाने के लिए अपना सबकुछ दे सकता है।” शैतान एक तरह से कह रहा था कि कोई भी इंसान यहोवा का वफादार नहीं रह सकता। वह आपके बारे में यही कहता है कि आपके दिल में परमेश्वर के लिए सच्चा प्यार नहीं है। अपनी जान बचाने के लिए आप परमेश्वर के नियम तोड़ देंगे। दूसरे शब्दों में शैतान कहता है कि आप भी उसकी तरह स्वार्थी हैं। क्या आप शैतान को गलत साबित करना चाहेंगे? ऐसा करने का एक बढ़िया मौका आपके पास है। (नीतिवचन 27:11) आइए अब दोबारा अय्यूब पर गौर करें कि उसे और क्या-क्या सहना पड़ा।
ऐसे साथी जिनसे उसे कोई दिलासा नहीं मिला
अय्यूब की जान-पहचानवाले तीन आदमियों ने जब उसकी दुख-तकलीफों के बारे में सुना, तो वे उससे मिलने आए। वे काफी दूर से सफर करके आए थे और उसे दिलासा देना चाहते थे। बाइबल बताती है कि वे तीनों अय्यूब के साथी थे। उनका नाम था एलीपज, बिलदद और सोपर। जब उन्होंने दूर से अय्यूब को देखा, तो वे उसे पहचान नहीं पाए। वह दर्द से तड़प रहा था और बीमारी से उसकी चमड़ी काली पड़ गयी थी। अय्यूब का हुलिया ही बदल गया था। अय्यूब को देखकर उन्होंने शोक मनाने का बहुत ढोंग किया। वे बिलख-बिलखकर रोने लगे और उन्होंने अपने सिर पर धूल डाली। फिर वे अय्यूब के पास ज़मीन पर बैठ गए। वे एक हफ्ते तक यूँ ही बैठे रहे और उससे एक शब्द भी नहीं कहा। इसका मतलब यह नहीं कि वे उसके दुख में शरीक हो रहे थे। उन्हें दिख रहा था कि अय्यूब दर्द से तड़प रहा है। मगर उन्होंने उससे बात करके यह जानने की कोशिश नहीं की कि उस पर क्या बीत रही है।—अय्यूब 2:11-13; 30:30.
जब कोई कुछ नहीं बोल रहा था तो अय्यूब ने ही बोलना शुरू किया। दर्द की वजह से वह इतनी कड़वाहट से भर गया कि उसने उस दिन को कोसा जब वह पैदा हुआ था। उसने कहा कि परमेश्वर ही उस पर यह सारी तकलीफें लाया है। (अय्यूब 3:1, 2, 23) ऐसा सोचने की वजह से उसका दुख और बढ़ गया होगा। हालाँकि उसने परमेश्वर के बारे में ऐसा सोचा, फिर भी उस पर उसका विश्वास अटल रहा। मगर उसे दिलासे की बहुत ज़रूरत थी। बाद में जब अय्यूब के तीनों साथियों ने बोलना शुरू किया, तो उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे उसे दिलासा मिले। उलटा उनकी बातें इतनी चुभनेवाली थीं कि अय्यूब को लगा कि वे चुप रहते तो ही अच्छा होता।—अय्यूब 13:5.
सबसे पहले एलीपज ने कुछ कहा। वह शायद बाकी दोनों आदमियों से और अय्यूब से उम्र में बड़ा था। फिर बाकी दोनों आदमियों ने भी बात की। मगर उन्होंने ने भी एलीपज की तरह बेकार की बातें कीं। उन्होंने परमेश्वर के बारे में कुछ ऐसी बातें कहीं जो अकसर लोग-बाग कहते हैं। जैसे यह कि परमेश्वर तो बहुत महान है, वह बुरे लोगों को सज़ा देता है और अच्छे लोगों के साथ अच्छा करता है। सुनने में शायद यह सब हमें सही लगे, मगर असल में उनकी बातों से अय्यूब का दुख और बढ़ गया। एलीपज कह रहा था कि परमेश्वर तो भला है। वह अच्छे लोगों के साथ अच्छा करता है और बुरे लोगों को ही सज़ा देता है। इसका मतलब अय्यूब ने ज़रूर कुछ बुरा किया होगा और यही वजह है कि उसे सज़ा मिल रही है।—अय्यूब 4:1, 7, 8; 5:3-6.
अय्यूब को उनकी बातें सही नहीं लगीं। उसने जता दिया कि वह उनसे सहमत नहीं है। (अय्यूब 6:25) मगर अय्यूब की बातें सुनकर उन तीनों आदमियों को और भी यकीन हो गया कि उसने ज़रूर कोई पाप किया होगा और अब वह उसे छिपाने की कोशिश कर रहा है। उसके साथ जो भी हो रहा है सही हो रहा है। एलीपज ने कहा कि अय्यूब ने अपनी मर्यादा लाँघ दी है, उसने दुष्टता की है और उसमें परमेश्वर का डर नहीं रहा। (अय्यूब 15:4, 7-9, 20-24; 22:6-11) सोपर ने अय्यूब से कहा कि वह बुरे कामों का मज़ा लेना छोड़ दे। (अय्यूब 11:2, 3, 14; 20:5, 12, 13) और बिलदद ने तो हद कर दी। उसने ऐसी बात कही जो अय्यूब को अंदर तक चुभ गयी होगी। उसने कहा कि अय्यूब के बेटों ने भी कोई पाप किया होगा। वे मौत की सज़ा के ही लायक थे।—अय्यूब 8:4, 13.
उसकी वफादारी पर सवाल उठाया गया
उन तीनों आदमियों की सोच बिलकुल गलत थी। वे कह रहे थे कि अय्यूब परमेश्वर का वफादार नहीं रहा। उन्होंने यह तक कह दिया कि कोई भी परमेश्वर का वफादार नहीं रह सकता। जब एलीपज ने बोलना शुरू किया, तो उसने एक अजीबो-गरीब घटना का ज़िक्र किया जो उसके साथ हुई थी। उसने कहा कि एक साया उसके सामने से गुज़रा था। वह साया ज़रूर कोई दुष्ट स्वर्गदूत था। उसके बहकावे में आकर एलीपज ने परमेश्वर के बारे में एक गलत बात कही। वह ऐसी बात है जिस पर यकीन करने से परमेश्वर पर से एक इंसान का विश्वास उठ जाएगा। एलीपज ने कहा कि “परमेश्वर को अपने सेवकों पर भरोसा नहीं, वह तो अपने स्वर्गदूतों में भी गलतियाँ निकालता है।” उसके कहने का यह मतलब था कि जब स्वर्गदूत परमेश्वर को खुश नहीं कर सकते, तो इंसान क्या है? बिलदद ने कहा कि अय्यूब परमेश्वर के वफादार रहने की जो भी कोशिश करे, परमेश्वर को कोई फर्क नहीं पड़ता। इंसान तो एक कीड़े के बराबर है।—अय्यूब 4:12-18; 15:15; 22:2, 3; 25:4-6.
क्या आप कभी ऐसे व्यक्ति से मिलने गए जो गहरे दुख में है? ऐसे व्यक्ति को दिलासा देना आसान नहीं होता। अय्यूब के तीन साथियों से हम सीखते हैं कि एक दुखी इंसान से हमें कैसी बातें नहीं कहनी चाहिए। उन्होंने बहुत बड़ी-बड़ी बातें कीं जो शायद सुनने में सही लगें। लेकिन सच तो यह है कि उन्होंने अय्यूब से कोई हमदर्दी नहीं जतायी। उन्होंने इतनी देर तक उससे बात की, मगर एक बार भी उसे नाम से नहीं पुकारा। उन्होंने इस बात पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया कि वह अंदर से कितना टूट चुका है। वे उसके साथ नरमी से पेश नहीं आए। * उनकी गलती से हम सीखते हैं कि जब हम किसी दुखी इंसान से मिलते हैं, तो हमें बहुत प्यार से बात करनी चाहिए और उसकी भावनाओं का खयाल रखना चाहिए। हमें उसका हौसला बढ़ाना चाहिए ताकि परमेश्वर पर उसका भरोसा बढ़े। उसे यकीन दिलाना चाहिए कि परमेश्वर उसके साथ कोई अन्याय नहीं करेगा बल्कि उसका भला करेगा और उस पर दया करेगा। अगर अय्यूब उन तीनों साथियों की जगह होता, तो वह उनके साथ इसी तरह पेश आता। (अय्यूब 16:4, 5) अब आइए देखें कि जब उन्होंने अय्यूब की वफादारी पर सवाल उठाया, तो उसने जवाब में क्या कहा।
अय्यूब अटल रहा
जब अय्यूब और उसके साथियों के बीच बहस शुरू हुई, तब तक अय्यूब का दुख से बुरा हाल था। उसने शुरू में ही मान लिया कि उसकी कुछ बातें “बेसिर-पैर की” हैं, क्योंकि “दुखी इंसान बहुत कुछ कह जाता है।” (अय्यूब 6:3, 26) हम समझ सकते हैं कि अय्यूब ने ऐसी बातें क्यों कही होंगी। उसका दुख बरदाश्त से बाहर था। उसे पता नहीं था कि उसके साथ यह सब क्यों हो रहा है। एक तो उस पर इतनी सारी मुसीबतें अचानक आ गयीं थीं और फिर जो भी हुआ वह इंसान की समझ से परे था। इसलिए अय्यूब मान बैठा कि यहोवा ही उस पर ये सारी मुसीबतें ले आया है। मगर वजह कुछ और थी। स्वर्ग में एक अहम मसला चल रहा था जिससे अय्यूब अनजान था। इस वजह से वह गलत सोच बैठा।
मगर परमेश्वर पर अय्यूब का विश्वास अटल था और यह उसकी बातों से साफ पता चलता है। उसकी ज़्यादातर बातें सच्ची थीं, सुनने में मनभावनी थीं और उनसे आज भी हमें हिम्मत मिलती है। उसने सृष्टि के बारे में बात करते वक्त यहोवा की तारीफ की और कुछ ऐसी बातें कहीं जो यहोवा ने ही उस पर ज़ाहिर की होंगी। मिसाल के लिए उसने कहा कि यहोवा “पृथ्वी को बिना किसी सहारे के लटकाए हुए है।” (अय्यूब 26:7) यह एक ऐसी सच्चाई है जो वैज्ञानिकों ने अय्यूब के ज़माने के सदियों बाद पता की थी। * अय्यूब ने यह भी कहा कि अगर उसकी मौत हो जाए, तो परमेश्वर उसे याद रखेगा, उसकी कमी उसे खलेगी और वक्त आने पर वह उसे ज़िंदा कर देगा। उसका यह विश्वास उतना ही अटल था जितना कि दूसरे वफादार स्त्री-पुरुषों का था।—अय्यूब 14:13-15; इब्रानियों 11:17-19, 35.
लेकिन अय्यूब के तीन दोस्तों ने वफादारी के बारे में जो कहा, क्या उस पर अय्यूब ने यकीन कर लिया? बिलकुल नहीं। उन्होंने कहा था कि इंसान परमेश्वर का वफादार रहे या न रहे, इससे परमेश्वर को कोई फर्क नहीं पड़ता। मगर अय्यूब ने कहा कि इंसान की वफादारी पर यहोवा ज़रूर ध्यान देता है। उसने यहोवा के बारे में पूरे भरोसे के साथ कहा, “वह जान जाएगा कि मुझमें ज़रा भी दोष नहीं।” (अय्यूब 31:6) अय्यूब यह भी जान गया कि उसके तीन दोस्त झूठी दलीलें देकर यह साबित करना चाहते थे कि वह परमेश्वर का वफादार नहीं है। इसलिए अय्यूब भी चुप नहीं रहा। वह अपनी सफाई में काफी देर तक बोलता रहा और उसकी बातों में इतना दम था कि उन तीनों की बोलती बंद हो गयी।
अय्यूब जानता था कि रोज़मर्रा ज़िंदगी में उसका चालचलन निर्दोष था। इसलिए उसने अपनी सफाई में बताया कि वह ज़िंदगी के हर दायरे में कैसे यहोवा का वफादार रहा। मिसाल के लिए, वह हर तरह की मूर्ति-पूजा से दूर रहता था, सबकी इज़्ज़त करता था, ज़रूरतमंदों की मदद करता था, उसका चरित्र साफ था, वह अपनी पत्नी का वफादार था और सबसे खास बात यह है कि वह सिर्फ यहोवा की भक्ति करता था जो एकमात्र सच्चा परमेश्वर है। इसलिए वह कह सका, “मैंने ठान लिया है, मैं मरते दम तक निर्दोष बना रहूँगा।”—अय्यूब 27:5; 31:1, 2, 9-11, 16-18, 26-28.
अय्यूब के विश्वास की मिसाल पर चलिए
क्या आप भी अय्यूब की तरह मानते हैं कि आपको हर हाल में यहोवा के वफादार रहना चाहिए? अय्यूब जानता था कि यह कहना काफी नहीं है कि हम वफादार हैं, बल्कि हम जिस तरह की ज़िंदगी जीते हैं, उससे दिखना चाहिए कि हम वाकई में वफादार हैं। रोज़मर्रा ज़िंदगी में हमें वही करना चाहिए जो यहोवा कहता है। मुश्किलें आने पर भी हमें यहोवा की आज्ञा माननी चाहिए। ऐसा करने से हम भी अय्यूब की तरह यहोवा को खुश कर रहे होंगे और उसके दुश्मन शैतान को नाकाम कर रहे होंगे। अय्यूब के विश्वास की मिसाल पर चलने का यही सबसे बढ़िया तरीका है।
अय्यूब की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। उन तीन साथियों के सामने अपनी सफाई देते समय वह एक ज़रूरी बात भूल गया। उसने यहोवा के पक्ष में बात नहीं की। बस खुद को निर्दोष साबित करने में ही लगा रहा। अब उसकी सोच सुधारने की ज़रूरत थी ताकि वह मामले को यहोवा की नज़र से देख पाए। उसे दिलासे की भी ज़रूरत थी, क्योंकि वह बहुत दुखी था और मातम मना रहा था। हम ज़रूर जानना चाहेंगे कि यहोवा अपने इस वफादार सेवक के साथ कैसे पेश आया जो विश्वास की एक बढ़िया मिसाल था। इस शृंखला के एक और लेख में बताया जाएगा कि आगे क्या हुआ।
^ पैरा. 23 एलीपज ने सोचा कि उसने और बाकी दोनों ने अय्यूब से बहुत नरमी से बात की है। मगर यह उसकी गलतफहमी थी। उन्होंने शायद अय्यूब से ऊँची आवाज़ में बात नहीं की होगी, मगर उनकी बातों ने अय्यूब को बहुत दुख पहुँचाया। (अय्यूब 15:11) इससे यही ज़ाहिर होता है कि भले ही एक व्यक्ति नरमी से बात करे, मगर उसकी बातें तलवार की तरह चुभ सकती हैं।
^ पैरा. 26 अय्यूब के ज़माने के 3,000 साल बाद वैज्ञानिकों ने इस बात को माना कि पृथ्वी किसी चीज़ पर टेक लगाए बिना भी रह सकती है। और आम लोगों ने इस बात पर तब जाकर यकीन किया जब अंतरिक्ष से पृथ्वी की तसवीर ली गयी और उन्हें दिखायी गयी।